कविता (Poem)

 (इन सभी कविताओ के लेखक निसार खान /युसुफ खान मोडावासी वाले ह । केवल स्कूल उपयोग के लिए) 
 अम्मा
चिंतन दर्शन जीवन सर्जन
रूह नज़र पर छाई अम्मा
सारे घर का शोर शराबा
सूनापन तनहाई अम्मा

उसने खुद़ को खोकर मुझमें
एक नया आकार लिया है,
धरती अंबर आग हवा जल
जैसी ही सच्चाई अम्मा

सारे रिश्ते- जेठ दुपहरी
गर्म हवा आतिश अंगारे
झरना दरिया झील समंदर
भीनी-सी पुरवाई अम्मा

घर में झीने रिश्ते मैंने
लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके चुपके कर देती थी
जाने कब तुरपाई अम्मा

बाबू जी गुज़रे, आपस में-
सब चीज़ें तक़सीम हुई तब-
मैं घर में सबसे छोटा था
मेरे हिस्से आई अम्मा

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युग बदल गया और फ़िर चरखे का चक्र चला ,फ़िर काला शासन ढकने चला श्वेत खादी
खूंखार शासको की खूनी तलवारों से ,बापू ने हंसकर मांगी अपनी आजादी
जो चरण चल पड़े आजादी की राहों पर,वो रुके न क्षणभर ,धुप,धुआं,अंगारों से
उठ गया तिरंगा एक बार जिसके कर में,वो झुका न तिल भर गोली की बौछारों से

इसीलिए ध्वजा पर पुष्प चढाने से पहले ,
तुम शीश चढ़ने वालों का सम्मान करो II
आरती सजाने से पहले तुम इसीलिए ,
आजादी के परवानो का सम्मान करो

कितने बिस्मिल ,आजाद सरीखे सेनानी ,इस पुण्य पर्व से पहले ही बलिदान हुए
जब अवध और झाँसी पे थे गोले बरसे ,तो मन्दिर ,मस्जिद साथ- साथ वीरान हुए
जलियांबाग में जिनका नरसंहार हुआ ,वो इसी तिरंगे को फहराने आए थे
जिनके प्रदीप बुझ गए गए अधूरी पूजा में,वो इसी निशा में ज्योत जलाने आए थे

तलवार उठाने से पहले तुम इसीलिए
मिट जाने वालों का गौरव गान करो ||
आरती सजाने से पहले तुम इसीलिए ,
आजादी के परवानो का सम्मान करो||

दलितों को मिला स्वराज्य इसी स्वर्णिम क्षण में,सदियों से खोया भारत ने गौरव पाया
कट गयी इसी दिन माँ की लौह श्रृंखलाएं,पीड़ित जनता ने फ़िर से सिंहांसन पाया
१५ अगस्त है नेता जी का मधुर स्वप्न ,बापू के अमर दीप की गायक वीणा है
अंधियारे भारत का ये है सौभाग्य सूर्य , माँ के माथे का सुंदर श्याम नगीना है
इसलिए आज मन्दिर जाने से पहले ,तुम राष्ट्र ध्वज के नीचे जन गन गान करो
आरती सजाने से पहले तुम इसीलिए ,आजादी के परवानो का सम्मान करो......
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आज़ादी की एक और वर्षगांठ

गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे |
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
सभी मनाते पर्व देश का आज़ादी की वर्षगांठ है |
वक्त है बीता धीरे धीरे साल एक और साठ है ||
बहे पवन परचम फहराता याद जिलाता जीत रे |
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे |
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
जनता सोचे किंतु आज भी क्या वाकई आजाद हैं |
भूले मानस को दिलवाते नेता इसकी याद हैं ||
मंहगाई की मारी जनता भूल गई ये जीत रे |
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे |
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
हमने पाई थी आज़ादी लौट गए अँगरेज़ हैं |
किंतु पीडा बंटवारे की दिल में अब भी तेज़ है ||
भाई हमारा हुआ पड़ोसी भूले सारी प्रीत रे |
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे |
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
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           PAPA
माँ को गले लगाते हो, कुछ पल मेरे भी पास रहो !
’पापा याद बहुत आते हो’ कुछ ऐसा भी मुझे कहो !
मैनेँ भी मन मे जज़्बातोँ के तूफान समेटे हैँ,
ज़ाहिर नही किया, न सोचो पापा के दिल मेँ प्यार न हो!

थी मेरी ये ज़िम्मेदारी घर मे कोई मायूस न हो,
मैँ सारी तकलीफेँ झेलूँ और तुम सब महफूज़ रहो,
सारी खुशियाँ तुम्हेँ दे सकूँ, इस कोशिश मे लगा रहा,
मेरे बचपन मेँ थी जो कमियाँ, वो तुमको महसूस न हो!

हैँ समाज का नियम भी ऐसा पिता सदा गम्भीर रहे,
मन मे भाव छुपे हो लाखोँ, आँखो से न नीर बहे!
करे बात भी रुखी-सूखी, बोले बस बोल हिदायत के,
दिल मे प्यार है माँ जैसा ही, किंतु अलग तस्वीर रहे!

भूली नही मुझे हैँ अब तक, तुतलाती मीठी बोली,
पल-पल बढते हर पल मे, जो यादोँ की मिश्री घोली,
कन्धोँ पे वो बैठ के जलता रावण देख के खुश होना,
होली और दीवाली पर तुम बच्चोँ की अल्हड टोली!

माँ से हाथ-खर्च मांगना, मुझको देख सहम जाना,
और जो डाँटू ज़रा कभी, तो भाव नयन मे थम जाना,
बढते कदम लडकपन को कुछ मेरे मन की आशंका,
पर विश्वास तुम्हारा देख मन का दूर वहम जाना!

कॉलेज के अंतिम उत्सव मेँ मेरा शामिल न हो पाना,
ट्रेन हुई आँखो से ओझल, पर हाथ देर तक फहराना,
दूर गये तुम अब, तो इन यादोँ से दिल बहलाता हूँ,
तारीखेँ ही देखता हूँ बस, कब होगा अब घर आना!

अब के जब तुम घर आओगे, प्यार मेरा दिखलाऊंगा,
माँ की तरह ही ममतामयी हूँ, तुमको ये बतलाऊंगा,
आकर फिर तुम चले गये, बस बात वही दो-चार हुई,
पिता का पद कुछ ऐसा ही हैँ फिर खुद को समझाऊंगा!
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अम्मा : एक कथा गीत

थोड़ी थोड़ी धूप निकलती थोड़ी बदली छाई है
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!

शॉल सरक कर कांधों से उजले पाँवों तक आया है
यादों के आकाश का टुकड़ा फटी दरी पर छाया है
पहले उसको फ़ुर्सत कब थी छत के ऊपर आने की
उसकी पहली चिंता थी घर को जोड़ बनाने की
बहुत दिनों पर धूप का दर्पण देख रही परछाई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!

सिकुड़ी सिमटी उस लड़की को दुनिया की काली कथा मिली
पापा के हिस्से का कर्ज़ मिला सबके हिस्से की व्यथा मिली
बिखरे घर को जोड़ रही थी काल चक्र को मोड़ रही थी
लालटेन-सी जलती-बुझती गहन अंधेरे तोड़ रही थी
सन्नाटे में गूँज रही वह धीमी-सी शहनाई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!

दूर गाँव से आई थी वह दादा कहते बच्ची है
चाचा कहते भाभी मेरी फूलों से भी अच्छी है
दादी को वह हँसती-गाती अनगढ़-सी गुड़िया लगती थी
छोटा मैं था- मुझको तो वह आमों की बगिया लगती थी
जीवन की इस कड़ी धूप में अब भी वह अमराई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!

नींद नहीं थी लेकिन थोड़े छोटे-छोटे सपने थे
हरे किनारे वाली साड़ी गोटे-गोटे सपने थे
रात रात भर चिड़िया जगती पत्ता-पत्ता सेती थी
कभी-कभी आँचल का कोना आँखों पर धर लेती थी
धुंध और कोहरे में डूबी अम्मा एक तराई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!

हँसती थी तो घर में घी के दीए जलते थे
फूल साथ में दामन उसका थामे चलते थे
धीरे धीरे घने बाल वे जाते हुए लगे
दोनों आँखों के नीचे दो काले चाँद उगे
आज चलन से बाहर जैसे अम्मा आना पाई है!

पापा को दरवाज़े तक वह छोड़ लौटती थी
आँखों में कुछ काले बादल जोड़ लौटती थी
गहराती उन रातों में वह जलती रहती थी
पूरे घर में किरन सरीखी चलती रहती थी
जीवन में जो नहीं मिला उन सबकी माँ भरपाई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है!

बड़े भागते तीखे दिन वह धीमी शांत बहा करती थी
शायद उसके भीतर दुनिया कोई और रहा करती थी
खूब जतन से सींचा उसने फ़सल फ़सल को खेत खेत को
उसकी आँखें पढ़ लेती थीं नदी नदी को रेत रेत को
अम्मा कोई नाव डूबती बार बार उतराई है!
बहुत दिनों पर आज अचानक अम्मा छत पर आई है! 

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कभी चहकती भोर नहीं है"

आसमान में उड़ने का तो, ओर नहीं है छोर नहीं है।
लेकिन हूँ लाचार पास में बची हुई अब डोर नहीं है।।

दिवस ढला है, हुआ अन्धेरा, दूर-दूर तक नहीं सवेरा,
कब कट जाए पतंग सलोनी, साँसों पर कुछ जोर नहीं है।

तन चाहे हो भोला-भाला, लेकिन मन होता मतवाला,
जब होता अवसान प्राण का, तब जीवन का शोर नहीं है।

वो ही कर्ता, वो ही धर्ता, कुशल नियामक वो ही हर्ता,
जो उसकी माया को हर ले, ऐसा कोई चोर नहीं है।

रूप रंग होता मूरत में, आकर्षण होता सूरत में,
लेकिन माटी के पुतले में, कभी चहकती भोर नहीं है।

अन्जाने अपने हो जाते

                           अन्जाने अपने हो जाते,
दिल से दिल मिल जाने पर।
सच्चे सब सपने हो जाते,
दिवस सुहाने आने पर।।

सूरज की क्या बात कहें,
चन्दा भी आग उगलता है,
साथ छोड़ जाती परछाई,
गर्दिश के दिन आने पर।

दूर-दूर से अच्छे लगते
वन-पर्वत, बहती नदियाँ,
कष्टों का अन्दाज़ा होता,
बाशिन्दे बन जाने पर।

पानी से पानी की समता,
कीचड़ दाग लगाती है,
साज और संगीत बताता,
सुर को ग़लत लगाने पर।
हर पत्थर हीरा नहीं होता,
ध्यान हमेशा ये रखना,
सोच-समझकर निर्णय लेना,
रत्नों को अपनाने में।


जो सुख-दुख में सहभागी हों,
वो मिलते हैं किस्मत से,
स्वर्ग, नर्क सा लगने लगता,
मन का मीत न पाने पर।

सच्चे सब सपने हो जाते,
दिवस सुहाने आने पर।।

मेरे प्यारे वतन, जग से न्यारे वतन।

  1. मेरे प्यारे वतन, जग से न्यारे वतन।
  2. मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
  3.  अपने पावों को रुकने न दूँगा कहीं,
    मैं तिरंगे को झुकने न दूँगा कहीं,
    तुझपे कुर्बान कर दूँगा मैं जानो तन।
    मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।। 
  4. जन्म पाया यहाँ, अन्न खाया यहाँ,
    सुर सजाया यहाँ, गीत गाया यहाँ,
  5. नेक-नीयत से जल से किया आचमन।
    मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।। 
      तेरी गोदी में पल कर बड़ा मैं हुआ,
    तेरी माटी में चल कर खड़ा मैं हुआ,
    मैं तो इक फूल हूँ तू है मेरा चमन।
    मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
    स्वप्न स्वाधीनता का सजाये हुए,
    लाखों बलिदान माता के जाये हुए,
    कोटि-कोटि हैं उनको हमारे नमन।
    मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
     
    जश्ने आजादी आती रहे हर बरस,
    कौम खुशियाँ मनाती रहे हर बरस,
    देश-दुनिया में हो बस अमन ही अमन।
    मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।

स्वागत गीत (savagat geet)--from -:Nisar khan Modawasi

स्वागतम आपका कर रहा हर सुमन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।

भक्त को मिल गये देव बिन जाप से,
धन्य शिक्षा-सदन हो गया आपसे,
आपके साथ आया सुगन्धित पवन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।

हमको सुर, तान, लय का नही ज्ञान है,
गल्तियाँ हों क्षमा हम तो अज्ञान हैं,
आपका आगमन, धन्य शुभ आगमन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।

अपने आशीश से धन्य कर दो हमें,
देश को दें दिशा ऐसा वर दो हमें,
अपने कृत्यों से लायें, वतन में अमन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।

दिल के तारों से गूँथे सुमन हार कुछ,
मंजु-माला नही तुच्छ उपहार कुछ,
आपको हैं समर्पित हमारे सुमन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।

स्वागतम आपका कर रहा हर सुमन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।
स्वागतम-स्वागतम, स्वागतम-स्वागतम!!